
मुजफ्फरपुर न्यूज ब्यूरो :- राज्य में हो रहे पंचायत चुनाव के प्रथम चरण का परिणाम कई मायने में दूरगामी संदेश देने वाला साबित हुआ है। यह उन सभी जनप्रतिनिधियों के लिए सबक है, जो अपने दायित्वों के प्रति सजग-सक्रिय नहीं रहते हैं। करीब 80 फीसद से अधिक पुराने मुखिया का हार जाना छोटी बात नहीं है। इससे स्पष्ट है कि हारने वाले निवर्तमान मुखिया जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। ग्रामीण मतदाताओं में इनके पांच वर्षों के कामकाज एवं तौर-तरीकों के प्रति जबरदस्त नाराजगी थी और मौका मिलते ही उन्होंने इनको बदल दिया।
माना जा रहा है कि शेष बचे दस चरणों के चुनाव परिणाम भी कुछ इसी तरह के रहने वाले हैं। ऐसे में जीतने वाले सभी नए मुखिया को चाहिए कि वे अपने दायित्वों का सही तरीके से निर्वहन करते हुए जनता की अपेक्षा पर प्रारंभ से ही खरा उतरने की कोशिश करें। इसके लिए ग्रामीणों की वास्तविक समस्याओं की सही पहचान जरूरी है। देखा जाए तो आज भी गांवों में ही बड़ी आबादी बसती है, लेकिन सुविधा के नाम पर यहां अब भी कुछ खास नहीं है। यह संकट विकास के शहरी माडल की वजह से पैदा हुआ है
अधिसंख्य गांव विभिन्न बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं। समुचित विकास की कमी से गांवों में पनप रहे असंतोष को दूर करने की जरूरत है। सरकार इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से निरंतर काम कर रही है। सड़क निर्माण, बिजली सहित कुछ अन्य क्षेत्रों में बेहतर काम हो रहा है। इसकी गति और बढ़ाते हुए सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, जलनिकासी एवं जल प्रबंधन आदि पर विशेष ध्यान देना होगा। अच्छी बात है कि प्रशासन पहले की तुलना में ज्यादा सक्रिय हुआ है, लेकिन उसे अभी और प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली में अपेक्षित सुधार के लिए समूचे राज्य में व्यापक स्तर पर अभियान चलाया जाना समय की मांग है। गांवों में आर्थिक सुधार और समाजिक बदलाव की गति तेज करनी चाहिए। ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए हो रहे प्रयासों को पूरी तरह सफल बनाना होगा। साथ ही भूमि सुधारों को बेहतर तरीके से लागू करते हुए आसान ऋण की उपलब्धता के माध्यम से ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश होनी चाहिए।
Comments